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Saturday, October 2, 2010

मेरा हमनशीं

मेरे होने का जिसने मतलब दिया था
मेरा हर ग़म अपना समझ पिया था
जिसने आँखों की घुलती हुई रोशनी को
लबों से चूमा था हथेली में लिया था
जो हरदम धड़कता था सीने में मेरे
जो चमचम चमकता था माथे पे मेरे
जो हँसता था तो कलियाँ खिलती थी दिल की
पल में मिलती राहें मुश्किल मंज़िल थी
जो औरो से था कुछ अलग मेरे दिल में
जो था मेरे संग-संग हर एक मुश्किल में
जिसने थामा था मुझको बाँहों में बाँहे डाले
जो आया था अंधेरे बनके उजाले
मेरा हमदम वो मेरा हमनशीं आ रहा है
मेरे मौला मेरा दिल घबरा रहा है
मेरे मौला मेरा दिल घबरा रहा है
-देवेन्द्र