चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

Friday, March 26, 2010

कुंता

अब
जबकि छोड़ आया हूँ  मैं
कुंता को बरघाट*
और भूल चुका हूँ
उसका सादा-सा चेहरा
दो ही दिनों में,
तब भी,
क्यूँ कर रहा हूँ
उस दिन का विश्लेषण
अपने मित्र के साथ उस
सूने से पार्क में
अपरिचित मुर्गाबियाँ देखते हुए
शाम को
क्या इसलिये कि
पूछ रहा है वह
उस रात की शुरूआत
जब उतरा था
स्त्रियों की तरह
आँखें बन्द कर मैं
समाधि में,
और कुछ ही देर बाद
किसी शरणार्थी-सा
दुबक गया था
उसके भीतर
और
खरोंचता ही रहा था
जाने कितनी देर
छाती पर गुदे
गोदने को.............,
             हाँ,केवल दो रोज़ में ही
              उतर गई थी
              बोतल में.......  मैंने कहा
पर भूल गया जान के भी
उसको बताना कि
-बेझिझक थी कुंता
-बखान से परे...........,
उस ढुलक चाल से उतरती
उघरारी रात में
दरख़्तों को छूती  बहती बयार में
जब ज़िंदगी
छटपटायी थी
तब अधकच्च मँजरियों की गंध लिये
छूने दिया था उसने मुझे
स्वयं को..............,
और ढह गया था मैं
उस आदिम उच्छावास में
जबकि होता उल्टा है
              बदचलन होगी...मित्र बोला
              नहीं...................,
पर रात सरक रही थी
चुपके से
आढ़त में माँगे
अहसास लिये,
और कुंता भी…....,चली गई,
पर उस रात
खोला था उसने भेद
कि मुझसे भी पहले
किये थे कई
आलिंगन,
पर छूने दिया था उसने
सिर्फ़ मुझे ही
खुद को......................!
अब 
जबकि भूल चुका हूँ
उसका सादा-सा चेहरा
तीन ही दिनों में
तब भी क्यूँ..............................|
*बरघाट-एक जगह का नाम
प्रणव सक्सेना
amitraghat.blogspot.com            

Wednesday, March 24, 2010

MY BIG CARTOON


Sunday, March 21, 2010

हेल्मेट

वह रक्षाबन्धन के दिन
कुछ किलो मीटर की दूरी पर रह रही
बहन को लिवाकर
बाईक से लौट रहा था
उधर तेजी से आते ट्रक ने उसे
टक्कर मार दी
भाई वहीं धाराशायी हो गया
बाजू मे उसके लटका स्वस्थ हेल्मेट रह गया,
तभी घिर आए तमाशबीनो मे से कुछ का मन  
भाई को अस्पताल पहुँचाने की गुहार
लगाती बहन के अस्तव्यस्त काया से
दीखते अंगो पर अटक रहा था
तो कुछ व्यवस्था से डरे थे ,  
किसी ने उसे अस्पताल नहीं पहुँचाया
वह तड़प - तड़प कर वहीं  मर गया
कि तभी
सर्व व्यापी गिद्धों ने
सबको खदेड़ दिया
अब लोथ पर व्यवस्था का क्रूर शिकंजा था
और अविलम्ब
व्यवस्था ने पचास रुपए का चालान
काटकर विक्षिप्त बहन को तत्काल सौंप दिया
उनका मानना था
उस युवक ने हेल्मेट नहीं पहना था ।
प्रणव सक्सेना
Amitraghat.blogspot.com