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Sunday, June 20, 2010

अब्बा

मैं ख़ाहिफ़* हूँ।
हर पहर जाग जाता हूँ चौंककर दफ़्अतन*
मेरी पत्नी मुझे बूढ़ा कहती है
और मैं हँसता हूँ
मसनूई* हँसी
उसके इस परिहास पर
मगर तीस का भी तो नहीं हुआ हूँ मैं
फिर भी नींद से बेहाल हूँ;
आज फिर
गजर बजने पर
उठ गया आदतन आधी रात को
देख वही कुछ साये
अब्बा के कक्ष में.................,
वे मौत के फ़रिश्ते हैं
जो रोज़ आ जाते हैं इसी तरह बेआहट-बेखटके,
मैं चूमता हूँ सोते में अब्बा को,
सावधान हो बैठा ही रहता हूँ
भोर की पहली किरण के उगने तक.......।
ख़ाहिफ़*-भयभीत, दफ़्अतन*अकस्मात, मसनूई*बनावटी

14 comments:

  1. Bhay aur udaasee ka bahut achha shabdankan...haan,jab man bhay grast hota hai,kuchh aisahi hota hai.

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  2. किसी अपने को खोने का भय .. अचानक इंसान को भयभीत कर देता है ... अच्छा शब्द संयोजन किया है आपने ...

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  3. बहुत मासूम, बहुत ख़ौफ़ज़दा बयान है...लेकिन जो भी है, मुकम्मल है...इसमें ख़ौफ़ के साथ साथ मोहब्बत भी छिपी है...बहुत सुंदर प्रस्तुति!!

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  4. भावुकता से भरी हुई कविता...अपने को खोने का भय ज़िन्दगी बदल सकता है..."

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  5. प्रणव जी, शब्द चयन बहुत अच्छा है, आपने शब्दों के अर्थ लिखे, अच्छा किया, मुझे दो शब्दों के अर्थ पता नहीं थे....
    एक पिता के लिए चिंतातुर पुत्र की मनोदशा का सजीव चित्रण किया है आपने...रचना बहुत अच्छी है...

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  6. सुंदर प्रस्तुति..

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  8. "बेहतरीन पोस्ट लिखी है ..अपने को खोने की मात्र कल्पना से ही मन सिहर जाता है ..जबकि ये मालूम है कि मृत्यु ही जीवन का एक मात्र सत्य है...."

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  9. अच्छी रचना... एक बात बहुत ठीक रही.. कठिन उर्दू शब्दों का अर्थ आपने लिखा... कविता के भाव समझने में आसानी रही...

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  10. क्या कहने भाई क्या कहने। गजब की रचना। मेरी बधाई स्वीकार करें। एक बात और उर्दू शब्दों मायने लिखने से रचना तो समझ आती ही है साथ ही जानकारी भी बढ़ती है। कई शब्द ऐसे होते हैं जो हम इस्तेमाल तो खूब करते हैं पर उनका सही अर्थ क्या है पता नहीं होता। इसके लिए भी आप बधाई के पात्र हैं।

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  11. हम जिन्हें प्यार करते हैं उन्हें खोना नहीं चाहते ! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ! बधाई !

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  12. और जब पाता हूँ कि इन सायों का असर अब्बा पर नहीं पड़ा, तो आश्वस्त हो जाता हूँ.

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  13. अद्भुत है..बहुत गहरे व्यंजनात्मक अर्थों के साथ..मगर आश्वस्तिदायक भी....

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