रात्रि के अन्धकार को आता देख
संध्या सोच रही थी
मेरा अंत इतना
भयानक, डरावना है
क्षण-क्षण निकट आता
यह अन्धकार क्या
मेरी हताशा ; मृत्यु या अज्ञानता
का प्रतीक है
कि और तभी
पल-पल ,
क्षितिज में परिवर्तित होते दृश्य
सुने नभ में
तारों की झिल-मिल ;
बदलियों का नर्तन
शने:-शने:
अन्धकार को
भौर कि आपतित किरणें
प्रभात कि ललाई से ,
रंगता आस का आभा मंडल
ये सब क्या मेरी विजय या
मेरा पुनर्जन्म
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बहुत सुन्दर शब्द चित्र खीचां है।
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