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Monday, July 14, 2008

निरीह बाल

अकस्मात्
गोरी-सी पूंजीवादी
पिच्छल टांगों में
दमन के बावजूद
उग आया कहीं से
वह नन्हा -शैतान काला बाल
और हतप्रभ वह आत्ममुग्धा
ले हाथ में
गंडासे-कुल्हाड़ी -आरे
चीरती है अपनी सुवेसल टांग
और जड़ तक पहुँच
विश्वजयी मुस्कान लिए
खींचकर
उस
हठी बाल को
पटकती है
खून से सनी सतह पर
और अवतरित हो समाजों में
दिखलाती है अपनी जख्मी टांग को
जिसे घूरते है पुरूष
और
भाग्यवान ही चूमता है
अंततः भर जाता है उसका मुंह खून से
निरीह बाल के

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