चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

Monday, July 14, 2008

आस

मन के संघर्ष समर में
उठती लहरों का
अंतहीन सागर में
वेदनाओं के ऊँचे-ऊँचे शिखर
रेगिस्तानी धूप में
मृगमरीचिका जैसी श्वास
अनंत भावनाएँ
अनन्य होने की चाह में
हो गया उद्देशहीन जीवन
बहता समय
पीछे छूटता जीवन-राग
थमा हुआ जीवन चक्र
निराशाओं का
घाना कुहासा
धुंधले से जीवन रंग
फ़िर भी है कहीं थोडी- सी ही सही
जीवन जीने की धुंधली आस

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