पहले मेरी बहिन को एक घंटा लगता था
साड़ी पहननें में
पहननें के बाद भी
ठीक होती ही रहती थी जब तक
कितना चिढ़ती थी
मेरे चिढ़ाने पर और
प्रसन्न होते थे घर वाले यह देख कर
मगर फिर आधा घंटा
पन्द्रह मिनट
अंततः झटपट
अब भी मैं चिढ़ाता हूँ
पर अब नही चिढ़ती वह
वरंच हंसती है
सूखे होठों पर जबरन
ओढ़ी गई हँसी
फंस जाती है मेरे भीतर तक
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