चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

Monday, July 14, 2008

मेरा घर

आँख बचा कर
चुपके से
कोने में
पानी की टंकी के पास
उग आया बालवृन्द
पीपल का
और फ़िर
धीमे से पीछे छोड़
शैशव को
शुभ्र - ललाम अंतहीन गगन को चूम
सीधा-सा तन कर खड़ा
उछाह से भरा
वह युवा वृक्ष
फाड़ बैठा आवेग में
कंक्रीट की वह विस्तृत छत
और फ़िर हुआ आरम्भ तुमुल संघर्ष
व्यक्तिवादी हाथों में
कुल्हाडियों और आरियों से
घिरा वह युवा झुटुंग
सीना तान दृढ़ता से
उद्-घोष करता है
की यह मेरा है घर
जहाँ तुम हो खड़े

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