अहा ! कितनी प्यारी–सी लड़की
जो मिली थी मुझे घूरे पर
मृत-अजन्मी
पर फिर भी मैंने
उसे उठाया और
तब आँख खोल वह मुस्काई
जिसमें थीं अनंत सम्भावनाएँ….
मैंने चूम ली उसकी
अर्ध विकसित नाक
और ली ढेर सारी मुफ़त की मिठ्ठियाँ
उसने पकड़ लिया मेरा चश्मा और
खिलखिला उठी,
लोग अब कोनों से देखकर मुझे
अहमक कहते हैं
पर कई आँखें हैं जो
पूछती हैं कि
हँसती हुई कैसी लगती थी
उनकी
बिटिया............”
शानदार,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कविता बन पड़ी है....
कुंवर जी,
sundar...komal...aur madhur...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....कोमल भावों से भरी....मन भीग गया...
ReplyDeleteममता भरी इस प्यारी सी पोस्ट पर बधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteमानो सपना देख रही हूँ...
ReplyDeleteनिर्मल अस्तित्व स्वस्थ और दृढ़ है।
Badi nazuk-si rachna..jab kabi 'bitiya' shabd sunti hun,ya padhti hun,anayaas aankhen bhar aati hain..
ReplyDeleteप्रेम, वात्सल्य, ममता, वाह !!!!!!!
ReplyDeletevery sweet poem
ReplyDeletecongrtas 4 dis effort
दिल छू गयी आपकी कोमल भाव वाली रचना ...
ReplyDeletepusp kabhi devta ko arpit ho
ReplyDeleteto wah puja,,,,,,
aur yehi puspa paron ke neeche ho ..to kuda..
lekin dono hi ke karan hum hai.....
vaise hi kise ke kiye ka
ashub ...
aap ne bana diya shubh..shubh..
badhai.
बहुत खूब, दिल को छू लेने वाली रचना
ReplyDeletehttp://mydunali.blogspot.com/
अद्भुत...आँखे भर आईं"
ReplyDeleteइस कविता ने मेरे जीवन के उस तंतु को छुआ है जिसे मैंने किसी के समक्ष व्यक्त नहीं किया... नितांत वैयक्तिक अनुभव... अभी भी आपकी कविता दिल से बाहर नहीं निकली है.. क्षमा चाहूँगा, किन्तु मेरे मौन को समझ पाए तो क्षमा की आवश्यकता नहीं रहेगी...
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