चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

Wednesday, May 19, 2010

अहा !

अहा ! कितनी प्यारी–सी लड़की
जो मिली थी मुझे घूरे पर
मृत-अजन्मी
पर फिर भी मैंने
उसे उठाया और
तब आँख खोल वह मुस्काई
जिसमें थीं अनंत सम्भावनाएँ….
मैंने चूम ली उसकी
अर्ध विकसित नाक
और ली ढेर सारी मुफ़त की मिठ्ठियाँ
उसने पकड़ लिया मेरा चश्मा और
खिलखिला उठी,
लोग अब कोनों से देखकर मुझे
अहमक कहते हैं
पर कई आँखें हैं जो
पूछती हैं कि
हँसती हुई कैसी लगती थी
उनकी
बिटिया............

13 comments:

  1. शानदार,

    बहुत बढ़िया कविता बन पड़ी है....

    कुंवर जी,

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  2. बहुत सुन्दर....कोमल भावों से भरी....मन भीग गया...

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  3. ममता भरी इस प्यारी सी पोस्ट पर बधाई स्वीकार करें

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  4. मानो सपना देख रही हूँ...
    निर्मल अस्तित्व स्वस्थ और दृढ़ है।

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  5. Badi nazuk-si rachna..jab kabi 'bitiya' shabd sunti hun,ya padhti hun,anayaas aankhen bhar aati hain..

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  6. प्रेम, वात्सल्य, ममता, वाह !!!!!!!

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  7. very sweet poem
    congrtas 4 dis effort

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  8. दिल छू गयी आपकी कोमल भाव वाली रचना ...

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  9. pusp kabhi devta ko arpit ho
    to wah puja,,,,,,
    aur yehi puspa paron ke neeche ho ..to kuda..
    lekin dono hi ke karan hum hai.....
    vaise hi kise ke kiye ka
    ashub ...
    aap ne bana diya shubh..shubh..
    badhai.

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  10. बहुत खूब, दिल को छू लेने वाली रचना

    http://mydunali.blogspot.com/

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  11. अद्भुत...आँखे भर आईं"

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  12. इस कविता ने मेरे जीवन के उस तंतु को छुआ है जिसे मैंने किसी के समक्ष व्यक्त नहीं किया... नितांत वैयक्तिक अनुभव... अभी भी आपकी कविता दिल से बाहर नहीं निकली है.. क्षमा चाहूँगा, किन्तु मेरे मौन को समझ पाए तो क्षमा की आवश्यकता नहीं रहेगी...

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