गर्जन-तर्जन से ध्वनित था संसार,
नीचे धरा पर गिरती जल-राशि-अपार।
उधर आषाढ़-मध्य-बिन्दु पर
विवर्धित-नवविभात था;
हर ओर फैला बूँदों का निनाद था,
कि तभी किंचित पा चेतना
फूट पड़ा तरू-शाख पर
नन्हा-सा कल्ला;
देख जग को प्रथम बार
पोपला वह उसनींदा-नंगा,
झाँक कर करता स्वागत
गिरते जल का हाथ पसार;
उधर लिए स्मित एक बूढ़ा पत्ता
चकित शिशु के वीक्ष्ण पर कर दृष्तिपात
अचम्भित था स्वयं देख
बचपन का अद्भुत साक्षात्कार,
सहसा टूटी तंद्रा,सुना स्वर,तड़ित
थी कहीं कौंधी;
लपका वह बूढ़ा तत्क्षण
भर शिशु को अंक में,छिपा लिया उसे ओट में,
तब कसमसाया वह बच्चा,
गुस्से में लाल हुआ
और भीगने को
पुनः हुआ ज्यों वह तत्पर
ढेंपी* पकड़ दिये बूढ़े ने उसे दो कसकर,
बुक्का फाड़ रोने वह लगा,
तब देख बूढ़े ने
किसलय को अपलक,
काँपते होंठों से उसको चूम लिया;
उधर तेज गति थी बारिश के प्रवाह की
तड़ित भी अहरह
कौंध रही,
अंततः
रात भर का भीगा
वह पीला पत्ता
तड़के
अकस्मात डंठल संग टूट गया...”
बारिश भी चुप थी
उधर आँख खोलता वह नन्हा कल्ला
अब शिशु न रहा
भर अवायु को पर्णरन्ध्र से वायु को
सकल विश्व में बाँटने लगा।
ढेंपी - डंठल, कल्ला - अंकुर
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete"शानदार कविता । शरुआत बेहतरीन थी..और अंत कुछ-कुछ अपेक्षित ..पर फिर भी आनन्द आया..शब्द कमाल के चुने और जहाँ तुकबन्दी की वो तो गजब की थी.."
ReplyDeleteओ हेनरी की कहाँई लास्ट लीफ की याद दिला दी...संदर्भ भले वह ना हो किंतु सम्वेदनाएँ समकक्ष हैं...
ReplyDeleteप्रणव जी,
ReplyDeleteआषाढ़ की तीव्र वर्षा में जन्म लेता आपका नन्हा सा "कल्ला" मन को आल्हादित कर गया, मै उसके जन्म की कल्पना करने लगी थी, इतना सजीव चित्रण है रचना का...और धेंपी व कल्ला जैसे शब्द तो मन को गुदगुदा गए, आपकी वर्षा ने कॉलेज में पढ़ी "आषाढ़ का एक दिन" की वर्षा याद दिला दी,,,,बहुत अच्छी व भीगी-भीगी सी रचना.
वाह सुंदर कविता. हालांकि देखना कुछ देर बाद हुआ.
ReplyDelete"बेहतरीन कविता रची है बहुत सारे कठिन शब्द थे..उनका अर्थ लिख देते तो अच्छा हो जाता...."
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत। भई वाह। क्या कहने। बधाई। उम्मीद है ऐसी ही रचनाएं और भी पढऩे को मिलेंगीं। स्वागत है आपका।
ReplyDeleteनयी पीढी बुजुर्गों के इस त्याग को समझे.
ReplyDeleteबारिश भी चुप थीउधर
ReplyDeleteआँख खोलता वह नन्हा कल्ला
अब शिशु न रहा
भर अवायु को पर्णरन्ध्र से वायु को
सकल विश्व में बाँटने लगा
सुंदर शब्द संयोजन है .... सुंदर विन्यास ... भाव भी अच्छे हैं रचना के ...
अच्छा प्रवाह है ...
आँख खोलता वह नन्हा कल्ला...
ReplyDeletebeautiful expression !
bahut badhiya...
ReplyDeletepranav ji,
ReplyDeletebahut hi behatreen prastutikaran. hindi shabd kosh par aapki pakad bahut hi achchi hai.tabhi shabdon ka prayog shandaar karte hain.
poonam
अद्भुत खयाल की कविता. शानदार और बेहतरीन.
ReplyDeleteबारिश भी चुप थीउधर
आँख खोलता वह नन्हा कल्ला
अब शिशु न रहा
शिशु पत्ते की रक्षा करते करते ... उफ! मार्मिक बना दिया आपने तो
नवांकुर सरीखी ही ताज़गी।
ReplyDeleteनयी सोच, नया उद्'गार।
बहुत-बहुत बधाई!
सुंदर रचना है !
ReplyDeleteबेशक बहुत ही सुन्दर कविता.
ReplyDelete