चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

Sunday, May 30, 2010

कबाड़ी वाला

कोलतार-सी

धधकती देह पर

ठुकी-झाँकती दो पनियल आँखें

सूखते होंठ-कर्रे बाल

लिये अधखुले धूल से सने पपोटे

ताकता है वह कभी आकाश तो

कभी घास के विराट मैदान-सा रीता ठेला

और लगाता है ज़ोर-की आवाज़

पेप्परला-कोप्पीला-ताबला-पेचपुर्ज़ा-खाली बोत्तल-कबाड़ला..

और हाँफ कर बैठ जाता है

ड्योड़ी पर, घूरकर

अपनी छोटी होती परछाई को,

इंतज़ार करता है वह

आसाढ़ की पहली फुहार का....

25 comments:

  1. Are wah! kya tasveer kheench ke rakh dee!

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  2. बहुत सही!! बढ़िया रचना!

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  3. तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

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  4. kmaal ki hridya chhoonewali rachna.

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  5. सही!! बढ़िया
    आपने बहुत शानदार लिखा

    http://mydunali.blogspot.com/

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  6. फुहार का इंताज़ार तो हमें भी है

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  7. मार्मिक ! अच्छी प्रस्तुति

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  8. आसाढ़ की पहली फुहार का....”
    so is every one waiting.........
    nice one............

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  9. नज़र के सामने से गुज़र गई पूरी फिल्म !

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  10. आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
    आचार्य जी

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  11. रचना का कथ्य और भाव जमे, शैली भी मगर कुछ है जो कम है। शायद मैं ठीक से जोड़ नहीं पाया अपने आप को। "छोटी होती परछाईं" से नहीं जुड़ा - दुपहर होने को है, यह समझ में आया - पर इसके तुरन्त बाद "आसाढ़ की फ़ुहार" से वह बिम्ब नहीं बना जो अपेक्षित था।
    कुल मिलाकर रचना उत्तम है, पर और बेहतर की अपेक्षा है आपसे - "बहन और चूहामार" ने जो पैदा की है।

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  12. बहुत ही मार्मिक दृश्य उपस्थित किया आपके शब्दों ने....

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  13. मौसम को इंसानी जज़्बे से जोड़ कर बेमिसाल लिखा है ... सजीव चित्रण ...

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  14. प्रणव जी, आपकी कविता का शीर्षक पढ़ते ही घर के सामने से निकलता कबाड़ीवाला नज़रों के सामने घूम गया...कविता अच्छी है. जीवन का संघर्ष दर्शाती हुई..

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  15. आजकल कहीं व्यस्त हैं क्या आप? नई लिखाई कब आएगी भाई?

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  16. सच क बहुत बेहतरीन चित्रण----अच्छी कविता।

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