धुँधलके को तोडती हुई
वह आवाज़
”शलाम शाब”
”दीवाली का इनाम शाब”
और सस्मित आ खड़ा हुआ फिर सलाम ठोकता
मालदार महाशयों के बीच जी रहा
हज़ारों किमी दूर थानकों से अभिनिष्क्रमित
तथागत की जन्म स्थली का वह वामन युवा
चुपचाप देखता कई दिनों का रखा
उपयोगितावादी पड़ोस का आडम्बर और मुँह चिढ़ाते
5-5- रूपये के दो सिक्के
रात की सी खामोशी आँखों में भरे
सलाम ठोकता चौतरफ गूँजते मौन को पीछे छोड़
ओझल हो जाता है कि सहसा फिर दीखता है
सींखचों के पार चोरी के आरोप में
लिये वही स्मित वही शलाम और थका संवाद
”हज़ार रूपये के वास्ते”
समर्थन
”सिर्फ हज़ार” (आश्चर्य)
मौन
”सिर्फ हज़ार(घृणा)
विस्मय
”छिह........छी.........,।“
विद्रूप हँसी हँसता गुम हो जाता है बेइलाज
दम तोड़ चुकी माँ की याद लिये कि तभी
फिर प्रकट हुआ अलग वेश में
हास्य मंचों पर
सामूहिक ठहाकों से पिटता
मातृभू के उपहास से आहत
सिर झुकाए मुस्काता
जीवन की तलाश में पराये देश आया वह
लौट जाता है चुपचाप
बागमती* की पनाह में.... ।
बागमती- नेपाल देश की नदी
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
"sundar bhaav"
ReplyDeletegautam
show must go on...
ReplyDeleteWah...bahut khub
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