स्मृति-प्रिय सुंदरतम सजनी !
आया जब से तुम से मिल कर ,
ले - ले चुम्बन आलिंगन भर ,
नहीं भूलता मैं वह रजनी -
आच्छादित घन घोर घटा मैं,
पानी बरस रहा था रिमझिम ,
चकमक चमके विधुत-स्वर्णिम ,
अग-जग था अचित निद्रा मैं ;
आकर चुपके से पा अवसर ,
तुमने कितने धीरे - धीरे ,
हाथ बढ़ाकर मेरे नीरे,
था खींचा जब मेरा अम्बर ,
पाकर किंचित चेतनता को ,
करवट बदली ली अंगडाई ,
उसनींदी बाहें फैलाई ,
ज्यों ही मैंने ऊर्ध्व दिशा को ,
आई पुलकित जल्दी इतनी ,
लिए अतुल सुकुमार - शीलता ,
बाहु - पाश मैं, नहीं भूलता ,
स्मृति - प्रिय सुन्दरतम सजनी !
Sunday, February 8, 2009
Wednesday, February 4, 2009
आत्मघाती का सच
उस औघड़ शाम में
जाने किस खंभार में
तार पर बैठी हल्ला करती लाल चिडिया
और आसमान पर टंगे - नीचे
गिरते रक्तिम बादल और
अरे हाँ !
था तो मैं भी वहीं
बूढ़े बोहड़ के नीचे उस
जन संकुल स्थल पर
जब हुआ था स्फोट
और उड़ गए थे
- सत्ताधीशों लोलुपों के
- कुछ नेताओं के
- मानसिक शोषकों के
- कुछ हरामियों के
- बिलावजह भूंकतें कुत्तों के
- बीच सड़क पर पागुर
करती जइया के
शरीर के चिथड़े
और फ़ैल कर काला पड़
गया लाल रक्त
पर वह जिंदा था जिसने
किया था यह कारनामा
चुपचाप देखता बैखौफ आंखों से से ख़ुद
की एक कटी टांग और एक कटा हाथ
कठहंसी हँसता किंतु उसकी
घोषणा करती आँखे कि
मुझ पर मुकदमा चलाओ
मेरा इलाज करवाओ
मुझे मेरी बिटिया को स्कूल से लेकर आना है
जाने किस खंभार में
तार पर बैठी हल्ला करती लाल चिडिया
और आसमान पर टंगे - नीचे
गिरते रक्तिम बादल और
अरे हाँ !
था तो मैं भी वहीं
बूढ़े बोहड़ के नीचे उस
जन संकुल स्थल पर
जब हुआ था स्फोट
और उड़ गए थे
- सत्ताधीशों लोलुपों के
- कुछ नेताओं के
- मानसिक शोषकों के
- कुछ हरामियों के
- बिलावजह भूंकतें कुत्तों के
- बीच सड़क पर पागुर
करती जइया के
शरीर के चिथड़े
और फ़ैल कर काला पड़
गया लाल रक्त
पर वह जिंदा था जिसने
किया था यह कारनामा
चुपचाप देखता बैखौफ आंखों से से ख़ुद
की एक कटी टांग और एक कटा हाथ
कठहंसी हँसता किंतु उसकी
घोषणा करती आँखे कि
मुझ पर मुकदमा चलाओ
मेरा इलाज करवाओ
मुझे मेरी बिटिया को स्कूल से लेकर आना है
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